हरियाली तीज
हरित वर्ण साटिका-पर्ण में, लिपटा हुआ गुलाब ।
भरा-भरा सा वदन तुम्हारा, बिल्कुल लाजबाब ॥
हरियाले सावन का रंग, कंगन की हरियाली ।
खग की चहक खनक में इसकी, मस्तानी- मतवाली ॥
हरे रंग का टीका, चेहरे पर खूब सजा है ।
कर रहा इशारे में प्रेम की, दिल से आज रज़ा है ॥
ऊपर से नीचे तक तुम पर, हरे रंग का राज।
इस हरियाली में खो जाए ,मेरा रंग भी आज॥
( साटिका = साड़ी)
गंगा धर शर्मा "हिंदुस्तान"