सोमवार, 2 मार्च 2009

हरियाली तीज

हरित वर्ण साटिका-पर्ण में, लिपटा हुआ गुलाब ।
भरा-भरा सा वदन तुम्हारा, बिल्कुल लाजबाब ॥

हरियाले सावन का रंग, कंगन की हरियाली ।
खग की चहक खनक में इसकी, मस्तानी- मतवाली ॥

हरे रंग का टीका, चेहरे पर खूब सजा है ।
कर रहा इशारे में प्रेम की, दिल से आज रज़ा है ॥

ऊपर से नीचे तक तुम पर, हरे रंग का राज।
इस हरियाली में खो जाए ,मेरा रंग भी आज॥
( साटिका = साड़ी)
गंगा धर शर्मा "हिंदुस्तान"

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