धीरज तनिक धरो
ओ , मधुमुखी सयानी !
थोड़े दिन की बात रह गई
फिर प्रेम ऋतू आनी ॥
फिर प्रेम ऋतू आनी ॥
सच है सही नहीं जाए, भीषण ज्वाला तन की ।
मचल-मचल कर मर जाती, हर एक तमन्ना मन की ॥
अरी, ओ वासंती प्रिये!मचल-मचल कर मर जाती, हर एक तमन्ना मन की ॥
धीरज तनिक धरो, बरसेगा
तपन शमन हित पानी॥
बंधन मुक्त करो , उड़ने दो अलकों का बादल।
नयनों की चंचलता पर , रहे नियंत्रण दो पल॥
अयि, संगिनी जीवन की!
आकुल न बनो, गगन कह रहा
घटा जामुनी छानी॥
गंगा धर शर्मा "हिंदुस्तान"
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