हाथों में तेरा चेहरा हो
सन्दर्भों को छोड़ प्रिये , आ ! आसमान के पर चलें ।
ना डोली की रहे जरूरत , ना संग कोई कहार चले॥
वहां चंद्र न होगा, बस तेरा आनन होगा।
नील गगन की जगह तुम्हारा, लहराता दामन होगा॥
सृष्टी का मतलब बस 'मैं और 'तुम ' होंगें।
तेरी जुल्फों के साये में, मीठे सपनों में गुम होंगे॥
मलय-समीर नहीं होगा, बस तेरी खुशबू होगी।
हर और बस एक शय , 'तू ' केवल 'तू' होगी ॥
कर जब जिस और बढाऊंगा ।
तेरा स्पर्श कर पाऊँगा ॥
रफ्तार वक्त की थम जाए, हाथों में तेरा चेहरा हो।
मेरा विश्वास तुम्हारी बिंदिया , तेरा प्यार ही सेहरा हो ॥
बस हमारी चाहत हो,
और कुछ भी तो न हो ।
बाह्य अलंकारों का आडम्बर , सारा यहीं उतर चलें ॥
सन्दर्भों को छोड़ प्रिये, आ आसमान के पर चलें ॥
गंगा धर शर्मा "हिंदुस्तान"
लेबल: सब उपमान तुम्हीं से है
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